गुरुवार, 28 जुलाई 2016

दिल गिरवी रख

दिल गिरवी रख वापस आये 


दिल गिरवी रख वापस आये, 
दो अनजाने नयनन मे
जो कहना था कह नहि पाये ,
क्या कहना इस उलझन मे

क्या होती है सुन्दरता को
कल ही मैने जाना था,
हम कितने लल्लू थे पर
वो तो बड़ा सयाना था,
चलते-चलते उसने मुड़कर
तिरछी नजर से देखा था,
फिर हौले से रुककर इक
नैन कटार सा फेंका था,
जो लगा था सीधे सीने मे,
पर तकलीफ हुई न जीने मे,
अब तो लगता है रहती इन
धुक धुक करती धड़कन मे
जो कहना था कह नहि पाये
क्या कहना इस उलझन मे

गुलबदन उस चेहरे पर इक
दाग नजर हमे आया था
दाग नही वो हया की लज्जत
मै भी बहुत शरमाया था
बीच-बीच मे जब हवायें
मुझको छूकर जाती थी
देखन की खातिर मुझको
बस पानी भरने आती थी
ईक छींट गिरी आ अधरो पर
नशा है उसका इन नजरो पर
अब तो लगता है चढ गई इन
सांसो की हर रिदमन मे
जो कहना था कह नहि पाये
क्या कहना इस उलझन मे

        (कुमार रोहित राज )

शनिवार, 23 जुलाई 2016

बहुत याद आती है ...........

मेरे बड़े भाई सौरभ को समर्पित जो अब हमारे बीच नही है


बहुत याद आती है,भइया तुम्हारी
छोड़ कर गये तुम ,क्यूँ दुनियां हमारी

गांवो मे ढूंढा गलियों मे ढूंढा
शाखो के पत्तो कलियों मे ढूंढा
दिखाई न देते कहाँ तुम छिपे हो
कभी सोचता हूँ शहर तुम गये हो
चहुंओर खोजे अब नजरे हमारी
बहुत याद आती है भइया तुम्हारी........1

यादो मे तुम हो ख्वाबो मे तुम हो
सांसो की सरगम बातो मे तुम हो
दुःख का ये कोहरा इतना घना है
पल भर की खातिर हंसना मना है
आश तब जगती है दिखे जब दुलारी
बहुत याद आती है भइया तुम्हारी...........2

गजलो का मन है गानो का मन है
गिटार की हर धुन तानो का मन है
अपने रुचिर सुर मे कुछ भी कहो तुम
उठते नही हो तब सोचे यही हम
कभी ना दिखेगी अब मुस्कान प्यारी
बहुत याद आती है भइया तुम्हारी............3
                     

                             (कुमार रोहित राज )

 

                                    LOVE YOU BHAI

अपनी प्रेम कहानी.......

मै तो यूँ ही चल रहा था हरियाली इन वादी से।

मै तो यूँ ही चल रहा था हरियाली इन वादी से।
खुश था इतना सम्हल न पाया आज हुई बरवादी से।।

नहीं पता था खो दूंगा मै तुमको इक नादानी में,
बाद में तुमको पढ़ा करुँगा अपनी ही प्रेम कहानी में,
दिल में यादो की इक खुश्बू अभी भी महका करती है,
फिर तन्हाई में आकर ये रैन बसेरा करती है,
दिल को चैन नहीं मिलता अब किसी भी घाटी वादी से,
खुश था इतना सम्हल ना पाया आज हुई बरवादी से........1

तुमको खोते ही मैंने चंचलता को भी खोया था ,
मेरे दिल के साथ-साथ अम्बर ने भी रोया था ,
जाने मुझको क्यूँ अब अपना मिलन असंभव लगता है ,
श्वेत-नीर का इक झरना आँखों से अबिरल बहता है,
रूह छोड़ते इस जीवन को प्यार हुआ आज़ादी से ,
खुश था इतना सम्हल ना पाया आज हुई बरवादी से...........2
               
                                                (कुमार रोहित राज )